प्रश्न नारद का

पर हित सरस धर्म नहीं भाई ।पर पीड़ा सम ही अधमाई ।।

दोस्तों इस लाइन का अर्थ है ।दूसरों की भलाई करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीँ है यानी अपने जीवन को जीने के लिए किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए निस्वार्थ भाव से प्राणी और समाज के हितार्थ कार्य करना चाहिए

दोस्तों आज मैं आपको सबको नारद जी का एक प्रश्न बताते हैं जो अपने पिता ब्रह्मा जी से करते

नारद जी एकबार भ्रमण करते करते पाताल लोक पहुँच गए वहाँ घूमने के बाद नारद जी का मन थोड़ा विचलित सा हो जाता है वह सोचने लगते हैं कि असुरों को आखिर पाताल में क्यों भेजा गया जबकि इनकी ताकत देवताओं से कम नहीं है अब नारद जी इस प्रश्न का उत्तर खोजने लगे पर समझ कुछ नहीं आ या उनकी उत्सुकता शान्त नही हुई तब नारद जी ने ब्रह्मा लोक को प्रस्थान किया वहाँ जाकर अपने पिता ब्रह्मा जी की चरण वंदना की ।ब्रह्मा जी ने पुत्र के मुख मंडल को देख कर मुस्कुराते हुए कहा कि पुत्र नारद कहो आज कैसे आना हुआ नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि पिता श्री मेरे मन में एक बात बार-बार आ रहा है की देवताओं और दानवों में श्रेष्ठ कौन है हे सृष्टि के परम पिता ब्रह्मा जी दानव तप और शक्ति में आगे तोदेवता भक्ति और ज्ञान मे फिर आपने दानवों को अंधेरे पाताल लोक देवताओं को स्वर्ग में स्थान दे रखा है ऐसा क्यों नारद जी की बात सुन कर ब्रह्मा जी मुस्कुराते हुए कहा कि पुत्र नारद तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तो हमारे पास नहीं है लेकिन कुछ उपाय बताते हैं अगर वैसा करोगे तो समझ में आ जाएगा ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि पुत्र देवता ओं और दानवों को भोजन पर मेरी ओर आमंत्रित करो कल ही मै भोजन की व्यवस्था करता हूँ अब नारद जी दानव और देवता दोनों को आमंत्रण देकर आ गये दानव बहुत खुश हुए की स्वर्ग में भोजन का आनंद लेगे दानव पहले पहुँच गए और ब्रह्मा जी से भोजन जल्दी शुरू करने का आग्रह किया अब दानव भोजन करने के लिए बैठे थालियाँ परोसी गई अब ब्रह्मा जी ने हाथ में कुछ लकड़ी के टुकड़े लेकर उपस्थित हुए और कहा कि आज भोजन की शर्त है कि इन लकड़ी के टुकड़ो को हाथ में बाँध कर भोजन करना होगा कोहनी के नीचे हाथ मुड़े गा नहीं दानव हाथ में लकड़ी बाँध कर भोजन करने लगे उन्होंने भोजन को हवा में उछाल कर खाने लगे फिर लेटकर थाली में मुँह डाल कर खाने लगे भोजन लेकिन असफल रहे ।

अब देवता ओं की बारी आई तो दानव बोलें की इनकी हाँथों पर भी लकड़ी बाँधिए ताकि इनकी दुर्दशा हम देख सके अब देवता भोजन ग्रहण करने के लिए बैठे भोजन की थालियाँ परोसी गई मंत्र पढ़ने के बाद देवता जैसे ही भोजन करने के लिए हुए ब्रह्मा जी ने अपनी शर्त के साथ उपस्थित हुए और कहा कि आज भोजन की शर्त है हाथ पर लकड़ी बाँध कर भोजन करना होगा हाथ पर लकड़ी बाँध दी गई देवता एक दूसरे को रेखकर मुस्कुराते हुए थोड़ा आगे खिसक गए और स्नेह पूर्वक एक दूसरे को खिलाने लगे और एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम भी जाहिर किया भोजन खत्म करने के बाद दानव दुखी हुए और कहा कि यह युक्ति हमें क्यों नहीं आई यह सब देखकर नारद जी मुस्कुराते हुए कहा कि मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया हमें पता चल गया इन दोनों में श्रेष्ठ कौन है

दानव पाताल में क्यों रहते हैं और देवता स्वर्ग में क्यों रहते हैं तत्पश्चात नारद जी ने ब्रह्मा जी की चरण वंदना की और वहाँ से विदा ली

दोस्तों यह जीवन हमें सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए नही मिला है

यदि हम इस का उपयोग परोपकार के लिए करे यो निश्चित रूप से हमें इसी जन्म में स्वर्ग की प्राप्ति होगी यदि हम दूसरों को प्यार और स्नेह देंगे तो बदले में हमें भी वही मिलेगा अपनी क्षमता के हिसाब से प्राणी और समाज के हितार्थ किया गया छोटा सा सहयोग भी बहुत महत्व पूर्ण भूमिका अदा करता है

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