हम हमारे रहन सहन शिक्षा हमारी नैतिक मूल्यों की पहचान है हमारे जीवन शैली में इतना परिवर्तन आ गया है हम अपने नैतिक संस्कार को साइड में रखकर आगे बढ़ने की दौड़ में शामिल है इह आपाधापी की जिंदगी में हमें अपनी मंजिल तक का पता नहीं है लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल है हम अपने घर समाज और आस-पास ऐसा रहन सहन बना लिए हैं जो एक अंधी खाई में लेकर जा रहा है हमारा देश 15अगस्त 1947 मे आजाद हुआ लेकिन हमारी जीवन शैली आज भी पाश्चात्य सभ्यता की नकल करती हैं हम अपने बच्चों को वो संस्कार नही दे पाते जो उनके व्यक्तित्व को मजबूत बनता है
बच्चा बोलने लायक हुआ नहीं हम लगते हैं उन्हें अंग्रेजी सिखाने स्वर की देवी सरस्वती को मानते हैं तो जो ध्वनि हमारे कंठ मुखरित होती है उसमें वीणा वादिनी का वास है वही स्वर तो हमें बच्चों को सिखाना चाहिए हिंदी शब्द हमारी पहचान है ।अगर सामने से गाय निकल रही है तो हमारे समाज की न ई आधुनिक युग की माता ए अपने बच्चे को बड़े गर्व से बताएं गी this is cow my baby I अब ए कैसा परिचय दिया है आपको बच्चे को बतना चाहिए कि बेटा यह हमारी गौ माता हैं जो हमें अमृत के समान दूध घी देती है
हमारे देश में अभिवादन का बहुत महत्व होता है । अभिवादन का मतलब पूजा एक श्रद्धा होती हैं अगर किसी बुजुर्ग या बड़े व्यक्ति के सामने ।हाँथ जोड़ कर अभिवादन करे तो प्रति उत्तर में लम्बी आयु का आशीर्वाद मिलेगा जो बुरे वक्त से निकाल कर आपको सफलता की ओर ले जाएगा
लेकिन आधुनिक समाज में यह प्रथा मरती जा रही है लोग गुड मार्निग ,हेलो अंकल हाय आंटी इन जैसे छोटे और अंग्रेजी शब्दों
ले रखी है हमारे देश की ताकत बनिए कमजोरी नहीं अपनी धरोहर को पहचाने
दोस्तों वायुमंडल से आक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही हमारे द्वारा फैलाया गया कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक है उसे ग्रहण करने वाले पेड़ पौधे कम होते जा रहे हैं विश्व महामारी
कोरोना काल में लाक डाउन होने की वजह से ओजोन परत का छेद भर गया ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोग घरों में बंद हो गया प्रदूषण का ग्राफ तेजी से डाउन हुआ फलस्वरूप हानिकारक विकिरण जो धरती पर सीधे गिरती थी जिससे स्किन कैंसर जैसी बीमारी होती थी
दोस्तों परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन यह निर्णय प्रकृति को लेने दे ताकि संतुलन बना रहे आजकल के वैज्ञानिक आविष्कार हमारे परिवेश को गंदा और कमजोर बना रहे हैं कोई समस्या आती है तो उसे खत्म करने की कोशिश नहीं करते उसके साथ जीने का उपाय बतते है हम एक ऐसी शिक्षा पद्धति के अधीन है जो हमें अपने बारे में जानने का मौक़ा ही नही हमें ऐसी शिक्षा दी जाती है कि हम उस देश के बराबर में बिकास कर रहे ।लेकिन बराबर में ही क्यों
क्यों हम अपने ज्ञान का दायरा बाधे आगे क्यों न जाए जबकि धरती पर क्या होने वाला है यह हमारे ग्रंथों में लिखा है हर घरों पूजा
की जाने वाली राम चरित मानस में भी इसका जिक्र है
कै निंदा जे जड़ करहीं. ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥ सुनहु तात अब मानस रोगा. जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा
इसमे कहा गया है कि इस रोग का मूल चमगादड़ ही होगा
हम अगर शिक्षा नीति मे शाश्त्र ग्रंथों को सामिल करे तो हमारे बदलाव को पंख लग जाएं गे हमें हमारे बदलाव को भी बदलने की आवश्यकता है
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